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माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं..।
तू मेरा शौक देख.. मेरा इंतजार देख।
प्रधानमंत्री ने जिस तरह इकबाल की इन पंक्तियों को पेश किया उससे विपक्ष लाजवाब दिखा। अपना भाषण तक देख कर पढ़ने वाले प्रधानमंत्री ने इन पंक्तियों के जरिये विपक्ष पर न केवल जोरदार वार किया, बल्कि सीधा जवाब भी दिया, जिन्होंने उन पर हमले के लिए इकबाल का ही सहारा लेकर कहा था:
न इधर, उधर की तू बात कर.. ये बता कि काफिला क्यों लुटा।
हमें रहजनों से गिला नहीं.. तेरी रहबरी का सवाल है।
ऐसा नहीं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहली बार शेर पढ़ा हो। कुर्सी संभालने के तुरंत बाद पाकिस्तान के तब के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को उन्होंने दोनों मुल्कों के रिश्तों के सिलसिले में यह शेर सुनाया था-
आ कि इन तरीकों से सुर्खियां पैदा करें.. ।
इस जमीन की बस्तियों से आसमान पैदा करें।
वैसे मनमोहन सिंह का पसंदीदा शेर है-
कुछ ऐसे भी मंजर हैं तारीख की नजरों में..
लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पाई।